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कहते हैं ‘टेलर बर्ड’…..मोहरा, मटियारी और गनियारी में आ रहे नजर

बिलासपुर- विलुप्त हो रहे बया को मोहरा का शांत माहौल खूब पसंद आ रहा है। शोर-शराबा से दूर इस गांव के नया तालाब के तटीय वृक्षों में जो घोसला बया पक्षी बना रहे हैं, उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी गांव ने स्वस्फुर्त उठा ली है ।

बुनकर पक्षी के नाम से भी पहचाना जाता है लेकिन ‘टेलर बर्ड’ ऐसा नाम है, जिसने बया की पहचान को विस्तार दिया। संरक्षण और संवर्धन को लेकर जैसी लापरवाहियां दिखाई गई, उसने इस प्रजाति को विलुप्त की कगार पर पहुंचा दिया है लेकिन मोहरा, गनियारी और मटियारी में यह प्रजाति घोंसला बना रही है, उसने पक्षी वैज्ञानिकों को हैरत में डाल दिया है।


कहते हैं टेलर बर्ड

हल्के पीले रंग का बया, घास और पत्तियों के छोटे-छोटे तिनके को बुनकर बेहद शानदार घोंसला बनाता है। शिशु बया की सुरक्षा के लिए नर बया द्वारा बनाया गया घोंसला तिनकों की एक महीन सुरक्षा परत से युक्त होता है। घोंसले में दो कक्ष होते हैं। एक में अंडा और दूसरा शयन कक्ष होता है। घोंसला का दरवाजा नीचे की ओर खुलता है। नर बया, घोंसलों का निर्माण समूह में करते हैं। बेहद कुशलता से बनाए जाने वाले यह घोंसले 28 दिन में तैयार होते हैं।


कटीली झाड़ियों पर घोंसले

पक्षियों का इंजीनियर, बुनकर, दर्जी और टेलरबर्ड के नाम से पहचाने जाने वाला बया, घोंसले कंटीली झाड़ियों में बनाते हैं । पहली पसंद बबूल के वृक्ष होते हैं। समूह में रहने वाला बया का मुख्य आहार कीट-पतंगे और मोटा अनाज होता है। रहवास की पसंदीदा जगह खेत, खलिहान, नदी, नहर और तालाब के तटीय क्षेत्र होते हैं, जहां जीवन शांति से बिताते हैं यह पक्षी।


इसलिए विलुप्ति की राह पर

नदी, तालाब, नहर के तटीय इलाकों में भी तेजी से बढ़ती मानव आबादी बया की प्राकृतिक रहवास को खत्म कर रही है। बढ़ता शोर-शराबा और वायु प्रदूषण भी बया की कम होती आबादी की वजह मानी जा रही है। सर्वाधिक लापरवाही संरक्षण और संवर्धन में देखी जा रही है, ऐसे प्रतिकूल माहौल में मोहरा, मटियारी और गनियारी जैसे गांव में बया परिवार का पहुंचना सुखद संदेश ही है।


विश्व की श्रेष्ठ इंजीनियर है बया

प्रकृति में कई अनोखे पशु और पक्षी पाए जाते हैं। जिनके जन्मजात गुण उन्हें बाकी प्रकृति से अलग बनाते हैं। इसी तरह पीले और काले रंग की एक चिड़िया होती है, जिसे बया के नाम से जाना जाता है। बया चिड़िया की एक सबसे बड़ी खासियत है कि यह एक बुनकर पक्षी है। बया एक बेहद अनोखा घोंसला बनाती है, जिसमें पौधों के तने से रेशे निकालकर एक-एक रेशों को बुना जाता है। मानव की कारगुजारियों से शहरी वातावरण में आजकल यह चिड़िया नहीं दिखती।

अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर

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