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गौरेला आयुष कार्यालय में अफसर दंपत्ति का आतंक…आदिवासी अधिकारी को घेरा, बोले- तुझे कुर्सी पर नहीं रहने देंगे

-शासकीय कार्यालय में हंगामा, धमकी और जातिगत दबाव: डॉ. श्रीयता कुरोठे और उनके पति के खिलाफ गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज

गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही।शासकीय कार्यालय में खुलेआम धमकी देने, जातिगत अपमान और शासकीय कार्य में बाधा पहुंचाने का गंभीर मामला सामने आया है। जिला आयुष कार्यालय गौरेला में पदस्थ प्रभारी अधिकारी डॉ. कैलाश सिंह मरकाम ने थाना गौरेला में शिकायत दर्ज कराई है, जिसके आधार पर डॉ. श्रीयता कुरोठे और उनके पति जयवर्धन उर्फ मनीष कुरोठे के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 221 एवं 121(1) के तहत आपराधिक प्रकरण पंजीबद्ध किया गया है।

घटना का विवरण:

4 जुलाई 2025 को दोपहर 1:25 बजे, पूर्व में पेंड्रा पदस्थ और वर्तमान में स्थानांतरित डॉ. श्रीयता कुरोठे अपने पति के साथ जिला आयुष कार्यालय में आईं और बेहद आक्रोशित अवस्था में प्रभारी अधिकारी को धमकाने लगीं। आरोप है कि उन्होंने और उनके पति ने कहा:

“इतनी जल्दी मुझे रिलीव कैसे किया?”
“तुम होते कौन हो?”
“तुम यहां कैसे काम करोगे, मैं देखती हूं।”
“मेरी सब जगह पहुंच है।”
“पॉवर क्या होता है बताऊंगा।”
“तुम इसी कुर्सी में बैठना, मैं ही प्रभार दिलाऊंगा।”
“तुमको देख लूंगी, कार्यालय कैसे चलाओगे देख लूंगी।”

प्रत्यक्षदर्शी भी मौजूद:

इस घटनाक्रम के दौरान कार्यालय में अरुण कुर्रे, संतोष कुमार, बुद्धनाथ कौशिक सहित अन्य स्टाफ मौजूद थे, जिन्होंने धमकी और अशोभनीय व्यवहार की पुष्टि की है।
जातिगत अपमान और मानसिक पीड़ा:

डॉ. कैलाश मरकाम ने अपनी शिकायत में स्पष्ट किया है कि वे आदिवासी समाज से आते हैं, और उनकी सहजता व विनम्रता का लाभ उठाते हुए उन्हें अपमानित किया गया। इस पूरे प्रकरण से उन्हें गंभीर मानसिक पीड़ा और सामाजिक अपमान महसूस हुआ।

दर्ज हुआ अपराध:

थाना गौरेला में प्रथम दृष्टया जांच के बाद BNS की धारा 221 (शासकीय कार्य में बाधा) और 121(1) (धमकी एवं दहशत फैलाना) के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया है। शिकायतकर्ता डॉ. मरकाम ने यह भी कहा है कि यदि उनके या उनके परिवार के साथ कोई अनहोनी होती है तो इसके लिए पूर्णतः जिम्मेदार डॉ. श्रीयता कुरोठे और उनके पति होंगे।

  • पृष्ठभूमि में ट्रांसफर आदेश:

डॉ. श्रीयता कुरोठे का प्रशासनिक स्थानांतरण शासन द्वारा 26 जून 2025 को खैरागढ़ के गेंदा टोला में किया गया था, और उन्हें नियमानुसार कार्यमुक्त किया गया था। लेकिन उन्होंने कार्यमुक्ति के बाद भी कार्यभार नहीं सौंपा और प्रभारी अधिकारी पर दबाव डालकर पद पर बने रहने का प्रयास किया।

बड़ा सवाल:

क्या शासन के ट्रांसफर आदेशों को यूं ही चुनौती दी जा सकती है?
क्या शासकीय कर्मचारी इस प्रकार दबंगई और धमकी देकर कार्यालयों में अराजकता फैला सकते हैं?

अब पूरा ध्यान इस बात पर है कि पुलिस प्रशासन इस प्रकरण में कितनी तेज़ी और निष्पक्षता से कार्रवाई करता है, या दबाव में यह मामला भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा।

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