ट्रांसमिशन लाइन का काम सार्वजनिक और राष्ट्रीय हित का, बिना जमीन मालिक के सहमति के हो सकता है अधिग्रहण, जमीन मालिक को सिर्फ मुआवजे का अधिकार
किसान की जमीन पर बिना कोई पूर्व सूचना दिए और सहमति लिए सीएसपीटीसीएल के द्वारा किए जा रहे ट्रांसमिशन लाइन के निर्माण कार्य को रुकवाने के लिए किसान ने याचिका लगाई थी। जिस पर अदालत ने कहा है कि ट्रांसमिशन लाइन का निर्माण कार्य जनहित और राष्ट्रीय हित का है। इसके लिए जमीन मालिक की पूरा सहमति लेना जरूरी नहीं है, वह केवल मुआवजे का अधिकारी है। किसान को मुआवजा देने का निर्देश सीएसपीटीसीएल को दिया गया है। साथ ही किसान को भी कार्य में व्यवधान उत्पन्न नहीं करने का निर्देश दिया गया है।
बिलासपुर। जनहित के लिए ट्रांसमिशन टावर निर्माण हेतु जमीन अधिग्रहण के खिलाफ लगी याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला दिया है। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहां है कि सार्वजनिक और जनता के हित में बिजली ट्रांसमिशन लाइन बिछाना जरूरी है। इसके लिए भूमि मालिक की सहमति के बगैर भी निर्माण किया जा सकता है। जमीन अधिग्रहण के बदले जमीन मालिक सिर्फ मुहावजे का हकदार है। भूमि अधिग्रहण रुकवा कर निर्माण कार्यवा रोक नहीं सकता। जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की सिंगल बेंच ने यह फैसला सुनाते हुए किसान की याचिका खारिज कर दी है।
पूरा मामला जांजगीर चांपा जिले से जुड़ा है। यहां बलौदा ब्लॉक के ग्राम कोरबी निवासी कि संजय कुमार अग्रवाल की 8.73 एकड़ कृषि भूमि पर सीएसपीटीसीएल ने बड़े बड़े गड्ढे खोदकर ट्रांसमिशन टावर निर्माण का कार्य शुरू कर दिया। किसान को बिना किसी पूर्व सूचना दिए और बिना उसकी सहमति लिए 11 मार्च 2024 के आदेश में निहित शर्तों के अनुसार 16 बड़े गड्ढे खोदकर ट्रांसमिशन टावर का निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया।
इसके खिलाफ किसान जय कुमार अग्रवाल ने याचिका लगाकर तुरंत निर्माण कार्य रोकने और भूमि को पूर्ववत स्थिति में लाने की मांग की थी। इसमें 11 मार्च 2024 के शर्तों के उल्लंघन की बात कही गई थी। जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की सिंगल बेंच में हुई सुनवाई में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा है कि ट्रांसमिशन लाइन के लिए सहमति की जरूरत नहीं है। यह राष्ट्रीय हित का कार्य है और भूमि मालिक को इसमें केवल मुआवजा दिया जायेगा।
हाईकोर्ट ने सीएसपीटीसीएल को भी निर्देश दिया है कि वह याचिकाकर्ता किसान को उचित मुआवजा दे। साथ ही किसान को भी निर्माण जारी में कोई बाधा नहीं डालने के लिए लिए सख्त निर्देश दिया गया है। आदेश जारी होने के 60 दिनों के भीतर मुआवजा दिए जाने के निर्देश अदालत ने दिए हैं।