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सुप्रीम कोर्ट ने सूर्यकांत तिवारी, सौम्या चौरसिया, रानू साहू को अंतरिम जमानत दी, छत्तीसगढ़ में रहने पर रोक

🔴 आरोपी राज्य के बाहर निवास करेंगे, एक सप्ताह में नया पता प्रस्तुत करना अनिवार्य

🔴 गवाहों को प्रभावित करने या साक्ष्य से छेड़छाड़ की स्थिति में जमानत रद्द होगी

🔴 पासपोर्ट जमा कराने और जांच एजेंसियों के साथ पूरा सहयोग करने के निर्देश

नई दिल्ली/रायपुर, मई 29

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को छत्तीसगढ़ कोल लेवी घोटाले के प्रमुख आरोपियों — व्यवसायी सूर्यकांत तिवारी, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी सौम्या चौरसिया, रानू साहू और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी समीर विश्वोई — को अंतरिम जमानत दे दी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने इस मामले में बेहद सख्त शर्तें लगाईं ताकि जांच की निष्पक्षता और प्रामाणिकता सुनिश्चित की जा सके।

अदालत ने निर्देश दिया कि सभी आरोपी ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के अनुसार जमानत बॉन्ड प्रस्तुत करें। विशेष रूप से, चार प्रमुख आरोपियों — सूर्यकांत तिवारी, सौम्या चौरसिया, रानू साहू और समीर विश्वोई — को अंतरिम जमानत की अवधि के दौरान छत्तीसगढ़ राज्य में निवास करने से रोक दिया गया है, हालांकि उन्हें जांच एजेंसियों या ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश होने की आवश्यकता होने पर राज्य में आना होगा। आरोपियों को रिहाई के एक सप्ताह के भीतर राज्य से बाहर अपने निवास का पता प्रस्तुत करना होगा और स्थानीय पुलिस थाने को सूचित करना होगा।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने आदेश का पाठ करते हुए स्पष्ट कहा, “ये ऐसे लोग हैं जिनमें जांच को प्रभावित करने की क्षमता है।” अदालत ने सख्त शब्दों में कहा कि यदि आरोपी गवाहों से संपर्क करने, उन्हें प्रभावित करने या किसी भी प्रकार से साक्ष्य से छेड़छाड़ करने की कोशिश करते हैं, तो यह अंतरिम जमानत के दुरुपयोग के रूप में माना जाएगा, जिससे उनकी रिहाई रद्द की जा सकती है।

इसके अतिरिक्त, अदालत ने सभी आरोपियों को निर्देशित किया कि वे अपनी अंतरिम रिहाई के तुरंत बाद अपने पासपोर्ट विशेष अदालत में जमा करें और जांच एजेंसियों के साथ पूरा सहयोग करें। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि यह अंतरिम राहत केवल अस्थायी व्यवस्था है और इससे आरोपियों के पक्ष में कोई न्यायिक लाभ नहीं उत्पन्न होगा।

सुनवाई के दौरान, पीठ ने अभियोजन पक्ष से कठोर सवाल पूछे और गवाहों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की, “आपको गवाहों में यह विश्वास पैदा करना होगा कि वे सुरक्षित रहेंगे। यदि आप उन्हें इन प्रभावशाली व्यक्तियों के रहमोकरम पर छोड़ देंगे, तो जांच का क्या होगा?” अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि गवाहों को पर्याप्त सुरक्षा नहीं दी गई, तो मामले की सच्चाई सामने लाना कठिन हो जाएगा और जांच की निष्पक्षता पर गंभीर आंच आएगी।

मामले का शीर्षक रानू साहू बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, एसएलपी (क्रिमिनल) नंबर 15941/2024 और इससे संबंधित याचिकाएं था। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं सिद्धार्थ डे, मुख्ता गुप्ता, सिद्धार्थ अग्रवाल, और अधिवक्ताओं तुषार गिरी व हर्षवर्धन पारगनिहा ने दलीलें पेश कीं, जबकि उत्तरदाताओं की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी और डिप्टी एडवोकेट जनरल रवि शर्मा ने पक्ष रखा।

छत्तीसगढ़ कोल लेवी घोटाला राज्य के हालिया सबसे चर्चित मामलों में से एक रहा है, जिसमें बड़े अधिकारियों, व्यवसायियों और राजस्व अधिकारियों पर आरोप लगे हैं। इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय और राज्य की आर्थिक अपराध शाखा दोनों जांच कर रही हैं, और अब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अंतरिम जमानत की शर्तों के तहत जांच की निगरानी की जा रही है।

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