खत्म हो रहा ‘फ्लेम ऑफ दी फारेस्ट ट्री’…….चिंता में वानिकी वैज्ञानिक
खासखबर बिलासपुर- आने वाले हैं दिन पौध रोपण के, लेकिन नजर नहीं आएंगे पलाश के पौधे क्योंकि बीजों की अंकुरण क्षमता बेहद कमजोर हो चली है। इसे देखते हुए बचे वृक्षों का संरक्षण और संवर्धन की योजना पर काम करने के संकेत मिल रहे हैं।
बिगड़ते पर्यावरण और बढ़ते वन उपज की महत्ता के बीच, फिर से पलाश की खोज-खबर ली जा रही है, लेकिन जो जानकारी इस प्रयास में मिल रही है, उसने वानिकी वैज्ञानिकों और वनोपज कारोबारियों के होश उड़ा दिए हैं। फौरी जांच में 60 से 70 फ़ीसदी वृक्षों के खत्म होने की खबर है। शेष बचे हुए वृक्षों पर अस्तित्व का संकट गहराया हुआ है।
होते हैं तीन रूप
देश के सभी हिस्सों में मिलती है यह प्रजाति। वृक्ष रूप, क्षुप रूप और लता रूप में मिलने वाला पलाश, मैदानी क्षेत्रों में वृक्ष के रूप में मिलता है, तो जंगल और पहाड़ों में पलाश क्षुप रूप में पाया जाता है। लता के रूप में मिलने वाली प्रजाति लुप्त हो चुकी है। वृक्ष का आकार मंझोला होता है। पत्तियां गोलाकार सीकों से निकलती है। एक सींक में तीन पत्तियां निकलती हैं। फूल छोटा अर्द्ध चंद्राकार और गहरा लाल होता है। फूलों के गिरने के बाद फलियां लगती हैं, जिनमें गोल और चपटे बीज होते हैं। छाल मोटी और रेशेदार तथा तना टेढ़ा होता है।
हर हिस्सा बेहद अहम
पलाश। मुंनगा के बाद दूसरा एकमात्र वृक्ष है, जिसका हर भाग महत्वपूर्ण गुण रखता है। पत्तियों से दोना और पत्तल बनाए जाते हैं, तो फूलों का उपयोग हर्बल कलर बनाने में किया जाता है। बीज से लुब्रिकेंट ऑयल बनाए जा रहे हैं। जड़ से मजबूत रस्सियां बनाई जाती है। मजबूती इसी बात से जानी जा सकती है कि यह रस्सियां जलजहाज निर्माण इकाइयां प्रयोग में लातीं हैं। छाल से महत्वपूर्ण औषधियां बनाने का काम सदियों से चला आ रहा है। और हां, पलाश का उपयोग अब कॉस्मेटिक सामग्री बनाने में भी किया जाने लगा है।
विनाश की राह पर
जलवायु परिवर्तन की मार झेलता पलाश बढ़ती आबादी की वजह से अंधाधुंध कटाई की भेंट चढ़ रहा हैं। संरक्षण और संवर्धन की ओर से हमारी लापरवाही भी पलाश के खात्मे की वजह बन रही है। पौधारोपण की जरूरत तो है लेकिन जो बीज मिल रहे हैं, उनकी अंकुरण क्षमता तेजी से कम होने की भी जानकारियां अनुसंधान के बाद सामने आ रहीं हैं। लिहाजा सामूहिक जिम्मेदारी लेने की जरूरत है ताकि बचा रहे पलाश।
यहां पर प्रयास
जलवायु परिवर्तन के दौर में पलाश बीज की अंकुरण क्षमता कमजोर होने की जानकारी के बाद टिश्यू कल्चर से पलाश के पौधे तैयार करने की कोशिश चालू हो चुकी है। गोल पहाड़ी हरियाणा स्थित टाटा ऊर्जा अनुसंधान के टिश्यू कल्चर प्लांट तथा पुणे के राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला में भी पलाश के टिश्यू कल्चर तैयार किए जाएंगे। योजना के अनुसार यह पौधे प्रथम चरण में अरावली की पहाड़ियों में रोपण किए जाएंगे।
वर्जन
संरक्षण और प्रबंधन प्रयासों की तत्काल आवश्यकता
वैश्विक स्तर पर शहरीकरण, कृषि विस्तार, अत्यधिक दोहन, चराई और अनियंत्रित जंगल की आग ने पलाश के प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित किया है। बदलते मौसम और बढ़ते तापमान के साथ जलवायु परिवर्तन ने पलाश के फूल और फलन के क्रम को बदल दिया है जिससे बीज उत्पादन में कमी आ गई है। इन खतरों को देखते हुए पलाश की सुरक्षा के लिए संरक्षण और प्रबंधन प्रयासों की तत्काल आवश्यकता है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर