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मैं थोड़ा काम से जा रहा हूँ देखे रहना,अगर कोई पूछे तो बोलना की अधीक्षक काम से गए है,लेट हुआ तो कल आऊंगा,बच्चो को देखते रहना,फ़ोन से सम्पर्क में बने रहना,मै काम निपटा कर आता हूँ…

ज्यादातर छात्रावास और आश्रम में PEON के भरोसे होता है पूरा काम..अधीक्षक रहते है नदारद…

कोई न कोई बहाना बनाकर गायब हो जाते है अधीक्षक,चपरासी के भरोसे रहता है आश्रम और छात्रावास

रसूखदार अधीक्षकों पर नहीं होती कार्रवाई

शिकायत और कार्रवाई के नाम पर होती है सिर्फ खानापूर्ति

ज्यादातर आश्रम और छात्रावास से गायब रहते है अधीक्षक

ख़ासखबर छत्तीसगढ़ बिलासपुर। हम आपको यह बता रहे है की छात्रावास और आश्रम में रहने वाला अधीक्षक भी गुरु से कम नहीं होता…क्योंकि छात्रावास में रहने वाले बच्चे उठना,पढ़ना,और बात करने के अलावा अन्य तौर तरीके समेत अनुशासन का पाठ उनसे ही पढ़ते है….लेकिन यह तब सम्भव है जब अधीक्षक अपनी जगह पर रहेंगे….मतलब आश्रम या छात्रावास में रहेंगे….लेकिन ऐसा होना संभव नहीं है…क्योंकि ज्यादातर अधीक्षक गायब रहते है…और कोई न कोई बहाना बनाकर कभी दिन भर तो कभी 24 घंटे तो कभी चपरासी के भरोसे आश्रम और छात्रावास को छोड़कर चले जाते है….जिसका भगवान ही मालिक रहता है….अगर इस बीच कुछ हो गया या फिर कोई घटना घट गयी तो उसका जिम्मेदार कौन होगा यह सोचने वाली बात है….लेकिन यह सब कोई नहीं सोच रहा है बल्कि अपनी मनमर्जी
से काम करते हुए अपनी मनमानी की जा रही है….दरसल हमने कई आश्रम और छात्रावास जाकर देखा और पाया की एक नहीं बल्कि कई तरह की लापरवाही है…जिसमे कोई और नहीं बल्कि खुद अधीक्षक जिम्मेदार है….या फिर इसे यूँ कहिये की इसके पीछे किसी न किसी बड़े अफसर का हाथ है जिसके कारण अधीक्षको जरा भी चिंता नहीं है….बड़े अफसरों का हाथ होने के कारण अधीक्षक भी लापरवाह हो रहे है…जिसमे साफ दिख रहा है की अधीक्षक नदारद है तो बच्चे बाहर है…और अपनी मस्ती में डूबे हुए है…ऐसे कई आश्रमऔर छात्रावास है जहा पर खुलेआम मिलीभगत से भ्रष्टाचार किया जा रहा है….
आपको बता दे इन दिनों शासकीय आदिवासी आश्रम और छात्रावास में अधिकारियों के संरक्षण में अधीक्षकों द्वारा खुल कर भ्र्ष्टाचार किया जा रहा है….जिससे आश्रम और छात्रावास में रहनें वालों छात्रों का विकास रुक गया है भविष्य अंधकार में नजर आता है….ज्यादातर आश्रम और छात्रावास में अधीक्षक निवास नहीं करते हैं जो नियमों के विरुद्ध है।ज्यादातर आश्रम और छात्रावास में स्वीकृत सीट ही पूरी तरह भरी नहीं है और दर्ज संख्या से छात्र की उपस्थिति कम होती है। आधे से अधिक छात्र नदारत होते हैं।
आश्रम और छात्रावास में अधिकारियों की शह पर अधीक्षकों द्वारा नदारत छात्र छात्राओं की,फ़र्जी उपस्थिति भरा जा रहा है।
ऐसा नहीं है कि आदिवासी विभाग द्वारा नोडल अधिकारी नियुक्त नहीं किया गया है निरीक्षण भी किया जाता है और तो और इस बात की जानकारी नवनियुक्त सयुंक्त संचालक को भी है।
बावजूद इसके इन अधिकारियों द्वारा आश्रम और छात्रावास की रिपोर्ट पर कार्यवाही क्यों नहीं किया जाता, अपने आप में एक बड़ा सवाल है?

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