मोबाइल के गलत उपयोग से बच्चे हो रहे आक्रामक, 4 साल में 263 केस दर्ज

स्कूल में ब्लास्ट से लेकर रेप जैसी जघन्य वारदात, क्या कहते हैं मनोचिकित्सक
बिलासपुर। मोबाइल का दुष्प्रभाव अब नाबालिकों के दिमाग पर इस कदर चढ़ गया है की नाबालिक अब सोशल मीडिया के प्रभाव में आकर आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने लग गए हैं। पिछले 4 सालों में 263 आपराधिक घटनाएं बिलासपुर जिले में नाबालिकों द्वारा घटित की गई है। इसमें सबसे बड़ा हाथ सोशल मीडिया पर देखे गए कंटेंट है।
पुलिस के अफसरों और मनोचिकित्सकों ने मोबाइल और सोशल मीडिया की लत से बच्चों को बचाकर रखने की आवश्यकता बताते हुए इसके टिप्स भी दिए हैं। हाल ही में बिलासपुर में ऑनलाइन ब्लास्ट करना सीखकर सेंट पलोटी स्कूल के आठवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं में ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट से सोडियम जैसा पदार्थ पटना से मंगवाया। इसे एक छात्रा ने अपने बुआ की मोबाइल से डिलीवर किया था। जिसके बाद स्कूल की एक शिक्षिका को टारगेट बनाने के लिए स्कूल के लेडिस बाथरूम में लगा दिया। पर इसकी चपेट में चौथी कक्षा की दस वर्षीया छात्रा स्तुति मिश्रा आ गई। गंभीर रूप से घायल छात्रा को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा है। इस मामले में पुलिस ने आठवीं कक्षा की दो छात्र दो छात्राओं को बाल संप्रेक्षण गृह में भेजा है। वही एक अन्य छात्रा परिजनों के साथ फरार है।
वीडियो देखने से नाबालिग ने की हत्या
इसके अलावा सरकंडा थाना क्षेत्र में भी पांच वर्षीया बालिका से 12 वर्षीया बालक ने मोबाइल में पोर्न देखने की लत के चलते रेप की कोशिश की। बच्ची के शोर मचाने पर लकड़ी के डंडे से हत्या कर दी। इसमें भी मोबाइल का प्रभाव सामने आया है। मोबाइल के ज्यादा प्रयोग से बच्चे वर्चुअल आटिज्म का शिकार हो रहे है। बच्चों का बौद्धिक विकास नहीं हो पाता और वे सही गलत की पहचान नहीं कर पाते। साथ ही सामाजिकता के अभाव में लोगों से जुड़ नहीं पाते और कॉन्फिडेंस की भी कमी हो जाती है।
माता पिता रहते है बिजी तो बच्चे को दे देते है मोबाइल
माता-पिता जब अपने काम में व्यस्त रहते हैं तो बच्चों को इंगेज करने के लिए मोबाइल पकड़ा देते हैं। वह उसके दुष्प्रभाव से अनजान रहते हैं और बच्चों को इसकी जब इसकी लत लगती है तो वह बड़ी हानिकारक साबित होती है। मोबाइल आज के समय में अत्यावश्यक उपकरण है। इसके उपयोग से इनकार नहीं किया जा सकता। इसके सावधानीपूर्वक कैसे उपयोग किया जाए और दुष्प्रभावों से कैसे बचा जाए इस बारे में एक्सपर्ट्स और पुलिस अधिकारियों ने सलाह दिया है।
मोबाइल देने के लिए भी बच्चे में होना चाहिए उम्र
मनोचिकित्सक और आईपीएस अधिकारी अभिषेक पल्लव का कहना है कि इंटरनेट चलाने में परिवार वालों का बच्चों पे कोई प्रतिबंध नहीं है। बच्चे विभिन्न प्रकार के व्हाट्सएप ग्रुप में जुड़ जाते हैं। बच्चों को पेरेंट्स इंडिपेंडेंस मोबाइल दे देते हैं। पर ऐसा करने के बजाय मोबाइल लाइसेंसिंग होना चाहिए। जिस तरह ड्राइविंग लाइसेंस के लिए एक न्यूनतम उम्र सीमा है ठीक उसी तरह मोबाइल के लिए कम से कम दसवीं कक्षा के बाद देने का नियम बना देना चाहिए। यदि मोबाइल की जरूरत हो तो मोबाइल कंपनियों को बैंक की तरह सिम जारी करना चाहिए। बैंक में बच्चों और बड़ों का अकाउंट अलग-अलग होता है। उसी प्रकार मोबाइल कंपनियां बच्चों और एडल्ट का अलग अलग सिम निकाले। बच्चों के सिम में नेट सर्फिंग की बजाय सिर्फ इनकमिंग और आउटगोइंग की सुविधा हो। इसके अलावा सीमित समय तक बच्चों को मोबाइल देखने की सुविधा हो। बच्चे वेब सीरीज न देखें। वेब सीरीज देखकर बच्चे अमेजॉन फ्लिपकार्ट से चाकू छुरी मंगवाना नशीली दवाई मंगवाना आदि कर रहे हैं। जिस पर रोक के लिए बच्चों को ऑनलाइन खरीददारी की सुविधा पेरेंट्स को जवाबदारी से देना चाहिए इसके अलावा इंटरनेट का आवश्यकता अनुसार उपयोग करना सिखाना चाहिए।
बेहतर पैरेन्टिंग बच्चों की बेहतर पढ़ाई तक ही सीमित,लेकिन इतना छूट भी नहीं की बच्चे क्या देख रहे
मामले में एसपी रजनेश सिंह ने कहा कि बेहतर पैरेन्टिंग बच्चों की बेहतर पढ़ाई तक ही सीमित नहीं है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए पेरेंटिंग में छूट का मतलब इतना भी छूट नहीं देना है कि बच्चे क्या देख रहे हैं या अभी हमारे कंट्रोल में ना हो। इसके अलावा बच्चों को ऐसा परिवेश उपलब्ध करवाना चाहिए । जिससे बच्चे सुबह से लेकर शाम तक जहां जहां इंटरेक्ट हो रहे है वहां वहां उन्हें कोई हिंसक चीज सेक्सुअल एब्यूज,चीटिंग, थ्रेटिंग, हरासमेंट का सामना न करना पड़े। इसके अलावा अभिभावकों को बच्चियों को ही संवेदनशील नहीं बनाना है बल्कि लड़कों को भी बनाना है। छोटी बच्चियों,महिलाओं के प्रति बच्चों के मन में सम्मान का भाव जागृत करना है ताकि आगे चल कर स्वस्थ समाज बनाएंगे।
पुलिस केवल धाराओं तक सीमित है। बावजूद इसके बिलासपुर में चेतना अभियान नाम से कम्युनिटी पुलिसिंग चलाया जा रहा
एसपी रजनेश सिंह ने आगे कहा कि पुलिस केवल धाराओं तक सीमित है। बावजूद इसके बिलासपुर में चेतना अभियान नाम से कम्युनिटी पुलिसिंग चलाया जा रहा है। जिसमें स्कूलों में चौक– चौराहों में, स्लम एरिया,मोहल्लों में बच्चों के प्रति और महिलाओं के प्रति आदर का भाव जगाने के लिए जनजागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
बिलासपुर जिले में चार साल में 263 केस
नाबालिक लोगों को सोशल मीडिया पर जाने का इतना जुनून है कि सोशल मीडिया पर छाने का इतना जुनून है कि बड़ी संख्या में किशोरों ने फेसबुक ,यूट्यूब,इंस्टाग्राम व दूसरे सोशल मीडिया पर अपने अकाउंट बनाकर वहां हथियारों के साथ वीडियो व गाने तक अपलोड किए हैं। इनमें फॉलोवर्स भी है।
2021 से 2024 तक नाबालिकों पर दर्ज अपराध
दुष्कर्म के 36, हत्या के 15, हत्या के प्रयास के 46,बलवा– मारपीट के 64,चाकूबाजी के 37,छेड़खानी के 65 मामले दर्ज हुए हैं। सिर्फ 2024 में ही 79 विभिन्न तरह के आपराधिक मामले नाबालिकों पर दर्ज हुआ है।
मोबाइल के उपयोग से बच्चे हो रहे आक्रामक
मनोचिकित्सक डॉक्टर आशुतोष तिवारी ने कहा कि सेहत खराब करने के साथ ही मोबाइल की लत किशोरों को हिंसक बना रही है। मोबाइल के ज्यादा उपयोग का सीधा असर बच्चों के मन पर पढ़ रहा है। जो चीज बच्चों को पसंद आ रही है उसे सही है या गलत है जाने बिना बच्चे पा लेना चाहते हैं। इसी के चलते बच्चे आक्रामक हो रहे हैं और खुद के साथ ही दूसरों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल नाबालिक अपराधियों की संख्या में आठ फीसदी इजाफा हुआ है। इन सब की बड़ी वजह मोबाइल की लत है।