होली के रंग,कर सकते हैं तंग….कानपुर से आ रहे रंग संदेह के घेरे में
खासखबर भाटापारा- आकर्षक लग रहे हैं चमकदार रंग क्योंकि इनमें अभ्रक और ग्लास पाउडर का मिश्रण हो सकता है। औद्योगिक कलर व ऑक्सीकृत धातु की भी मिलावट की आशंका है। होली बाजार में ऐसे रंग एवं गुलाल खूब बेचे जा रहे हैं।
80 से 100 रुपए किलो। यह कीमत ऐसे रंग की है,जिनकी खरीदी इस बाजार में जमकर हो रही है। निगरानी एजेंसियों ने जिस तरह आंखें मूंदी हुई हैं, उसने होली के बाद त्वचा रोग से पीड़ितों को अस्पतालों तक पहुंचाने की राह खोल दी है। ग्रामीण क्षेत्र की खरीदी, जिस अनुपात से निकली हुई है, वह हैरत में डाल रही है कारोबारियों को।
आशंका मिश्रण की
फूलों से नहीं, अब बनाए जाते हैं सिंथेटिक कलर। आसान और सस्ते में उपलब्ध होने वाले ऑक्सीकृत धातु और औद्योगिक रंग व इंजन ऑयल की मदद से बने इन रंगों में अभ्रक और ग्लास पाउडर का मिश्रण होने की जानकारियां आ रहीं हैं। चमकदार बनाने के लिए वाइब्रेंट शेड्स, मैटेलिक शीन्स और नियॉन कलर भी खूब मिलाए जाने लगे हैं। यही वजह है कि देखने में आकर्षक लगते हैं। इसलिए इनकी खरीदी प्राथमिकता के आधार पर की जा रही है।
हाथरस नहीं, अब कानपुर से
रंग पर्व होली के लिए कभी हाथरस का नाम, कारोबार और उपभोक्ताओं की जुबान पर होता था। अब स्थितियां बदल गई हैं। कानपुर में छोटी इकाइयों से सस्ता और सर्व सुलभ रंगों की उपलब्धता ने जैसी जगह बनाई है, उससे कारोबारी क्षेत्र हैरत में है। हाथरस के रंगों की तुलना में कीमत का कम होना बाजार को और बढ़ा रहा है। छत्तीसगढ़ के लगभग हर शहर में घुमंतु कारोबारी डेरा डाल चुके हैं। ऐसे में पुरानी संस्थानें कमजोर मांग का सामना कर रहीं हैं।
त्वचा के लिए, है नुकसान देह
ज्यादा समय तक बने रहने वाले रंगों में केमिकल बेस कलर का मिश्रण किए जाने की खबरें भी हैं। बताते चलें कि क्रोमियम, लेड ऑक्साइड और कार्सिनोजेनिक केडियम जैसे रसायन, सिंथेटिक कलर बनाने में खूब प्रयोग हो रहे हैं। इन रसायनों से दाग, धब्बे, मुंहासे और अन्य त्वचा रोग का होना प्रमाणित हो चुका है। इसके अलावा आंतरिक कैंसर की भी आशंका को यह सिंथेटिक कलर बढ़ाते हैं।
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प्राकृतिक रंगों के साथ खेले सुरक्षित होली
हम सभी मिलकर प्रकृति की रक्षा करें और प्राकृतिक रंगों के साथ होली का त्योहार मनाएं। होलिका दहन के लिए हरे पेड़-पौधे एवं होली खेलने के लिए केमिकल युक्त रंगों का कदापि प्रयोग ना करें। यह प्रकृति के साथ पर्यावरण को संरक्षित रखने में सहायक होगा।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर
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इन अंगों को रखें सुरक्षित
केमिकल रंगों में क्रोमियम, लेड ऑक्साइड, कैडमियम जैसे कई रसायन होते हैं, जिनकी वजह से आंख, कान, नाक और शरीर की आंतरिक समस्याएं हो सकती है, इसलिए होली खेलते समय इन अंगों में रंग जाने से बचाएं।
डॉ. के.के.श्रीवास्तव, होम्योपैथिक चिकित्सक, गौरव पथ, बिलासपुर