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अनुकंपा नियुक्ति पाई बहू को नहीं देना होगा सास को भरण पोषण, अनुकंपा नियुक्ति को मृतक की संपत्ति मानने से इनकार करते हुए फैमिली कोर्ट का फैसला रद्द

अनुकंपा नियुक्ति पाई बहू को फैमिली कोर्ट ने सास को दस हजार रुपए प्रतिमाह भरण पोषण देने के आदेश दिए थे। जिसे हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने रद्द करते हुए कहा है कि अनुकंपा नियुक्ति मृतक की संपत्ति नहीं होती,इसलिए बहू को सास को भरण पोषण देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

बिलासपुर। अनुकंपा नियुक्ति पाई हुई बहू को सास को भरण पोषण नहीं देना होगा। बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि अनुकंपा नियुक्ति को मृतक की संपत्ति नहीं माना जा सकता इसलिए वह नौकरी से प्राप्त वेतन के एवज में सास को भरण पोषण देने के लिए बाध्य नहीं है। अदालत ने इसके साथ ही महेंद्रगढ़ पारिवारिक न्यायालय द्वारा सास को दस हजार रुपए प्रतिमाह भरण पोषण देने के दिए गए फैसले को रद्द कर दिया है।

पूरा मामला एसईसीएल के मृत कर्मचारी की पत्नी से जुड़ा है। एसईसीएल हसदेव क्षेत्र में पदस्थ एसईसीएल कर्मी भगवान दास की मृत्यु सेवा में रहते वर्ष 2000 में हो गई थी। उनकी मृत्यु के बाद उनके बड़े बेटे ओंकार को अनुकम्पा नियुक्ति मिली। नौकरी करते हुए ओंकार की भी मृत्यु हो गई। तब ओंकार की पुत्री मात्र एक वर्ष की थी। इसके चलते उसकी पत्नी को केंद्रीय अस्पताल मनेंद्रगढ़ में सामान्य श्रमिक के पद पर अनुकंपा नियुक्ति दी गई। नौकरी लगने के बाद ससुराल को छोड़कर स्व. ओंकार की पत्नी अपने मायके में जाकर रहने लगी।

ओंकार की मां ने परिवार न्यायालय में आवेदन देकर बताया कि उसकी बहू ने 10 जून 2020 को एक शपथ पत्र देखकर नियुक्ति के समय सास को दूसरा आश्रित बताया था और नौकरी मिलने पर सास के भरण पोषण की बात कही थी। पर नौकरी लगने के बाद वह मुकर गई। सास ने बताया कि वह 68 साल की हो गई है और उसे कई बीमारियां है, इलाज में उसके काफी रुपए खर्च होते है जबकि उसे मात्र 800 रुपए पेंशन मिलती है। इसलिए उसे हर महीने बहू से 20 हजार रुपए भरण पोषण दिलवाई जाए। इसके साथ ही केस में खर्च 50 हजार रुपए भी दिलवाई जाए। जिस पर मनेंद्रगढ़ परिवार न्यायालय ने सुनवाई के बाद दस हजार रुपए भरण पोषण देने का आदेश दिया था।

परिवार न्यायालय के फैसले के खिलाफ बहू ने हाईकोर्ट में अपील की और बताया कि सास की देखभाल उनके दूसरे बेटे उमेश द्वारा की जा रही है। उमेश हर महीने 50 हजार रुपए कमाता है। सास को 800 नहीं तीन हजार रुपए पेंशन मिलती है। खेती से भी सालाना एक लाख रुपए की आय सास को हो रही है। पति की बीमा राशि का भी सात लाख रुपए सास को मिला है।

बहू ने बताया कि उसे सिर्फ 26 हजार रुपए वेतन प्राप्त होता है,जिसमें वह अपना और अपने 6 वर्षीय बेटी का खर्चा चलाती है। मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे और सचिन सिंह राजपूत की बेंच में हुई। सनी के बाद डिवीजन बेंच ने माना कि अनुकंपा नियुक्ति मृतक की संपत्ति नहीं होती,इसलिए बहू वेतन से सास को भरण पोषण देने के लिए बाध्य नहीं है। बहू पर भरण पोषण देने के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता। कोर्ट में पारिवारिक न्यायालय का आदेश रद्द कर दिया है। साथ ही कहा है कि सास कानून के तहत किसी अन्य उपाय की तलाश करें।

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