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प्रेस क्लब में पत्रकारों से रूबरू हुए एयू के कुलपति…कहा- हमारे डीएनए में बस गई है आध्यत्मिकता

आध्यत्म को जीते हैं भारतवासी: वाजपेयी

बिलासपुर। भारत में शोषण, पोषण, अलग करने और जोड़ने के साथ ही कई तरह की संस्कृतियां हैं। हमारे यहां के लोग आध्यत्म को जीते हैं। यहां आध्यत्म एक परंपरा बन गई है। हमारे डीएनए में भी आध्यत्म बस गई है।
ये बातें अटल बिहारी बाजपेयी यूनिवर्सिटी के कुलपति अरुण दिवाकर नाथ वाजपेयी ने बुधवार को बिलासपुर प्रेस क्लब में पत्रकारों से रूबरू कार्यक्रम में कहीं। उन्हें ब्रिटिश पार्लियामेंट के हाउस ऑफ लाड्र्स से इंटरनेशनल बुक ऑफ ऑनर अवार्ड से नवाजा गया है। उनकी इस उपलब्धि पर बिलासपुर प्रेस क्लब की ओर से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रेस क्लब के अध्यक्ष इरशाद अली ने की। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार, सृजन पीठ के संस्थापक सतीश जायसवाल, प्राचार्य सिद्धेश्वर सिं रहे। उन्होंने कहा कि लंदन में 1०० यूनिवर्सिटी के कुलपति को बुलाया गया था, उस कार्यक्रम में वे भी शामिल हुए। कार्यक्रम के दौरान भारतीय संस्कृति की विश्ोषताओं को दूसरे देशों की कल्चर से कैसे अलग और विश्ोष स्वरूप में स्थापित करने की चुनौती थी। उन्होंने कहा कि जितने भी विकसित देश हैं, ‘वहां फुट डालो और शासन करो’ नीति अपनाई जाती है। यह एक तरह से संस्कृति ही है। हमारे भारत देश में तरह-तरह की संस्कृति और परंपराएं चलन में हैं। हमारे देश के कुछ हिस्सों में शोषण संस्कृति है तो कुछ जगहों पर पोषण भी संस्कृति का स्वरूप है। लोगों को अलग करना और जोड़ना भी संस्कृति का हिस्सा है। आज के राजनीतिक परिवेश की बात करें तो अलग करो की संस्कृति दिखाई देती है। राजनीतिक दल फुट डालो और सत्ता में पाओ की नीति पर काम करते हैं। कार्यक्रम में आभार प्रदर्शन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार रुद्र अवस्थी ने कहा कि यह एक ऐसा क्षण है, जिस ज्ञान को हम कई पुस्तकों को पढ़कर नहीं प्रा’ कर पाते, यहां आए बुद्धिजीवियों केा चंद मिनटों में सुनकर उसे कहीं अधिक ज्ञान पा लेते हैं।


गंगा से लेकर महाभारत से विरासत में मिली है संस्कृति
कुलसचिव वाजपेयी ने कहा कि जब भी हमारे यहां पवित्रता की बात होती है तो सीध्ो गंगा मां को याद किया जाता है। यह हमारी संस्कृति बन गई है। इसी तरह से भाई-भाई में मतभ्ोद को लोग विभीषण का नाम दे देते हैं। यही वजह है कि भारत देश में किसी का भी नाम विभीषण नहीं रखा जाता। हर समस्या के हल के लिए भगवत गीता का रास्ता दिखाया जाता है, जो महाभारत से जुड़ा हुआ है। महाभारत में धर्म और अधर्म के बारे में हमें बहुत कुछ सीख मिलती है।


सोने की दीवार देखकर चौंक गए


कुलपति वाजपेयी ने बताया कि उन्हें सौभाग्य से हाउस ऑफ लाड्र्स में महारानी से मुलाकात करने का अवसर मिला। जब हाउस ऑफ लाड्र्स में गए तो वहां की दीवारों को देखकर चौंक गए। दरअसल, दीवारें सोने से बनी हुई हैं। यह देखकर उनके मन में अलग ही अनुभूति हुई। उनके मन में विचार आया कि यह मेरा सम्मान है या फिर मैं खुद को अपमानित महसूस करूं, क्योंकि ये जो सोना है, वह तो भारत से लुटा गया धन है।


आज भी जिंदा है तहजीब


उन्होंने लंदन प्रवास के दौरान घटी दो घटनाओं का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि जब वे हाउस ऑफ लाड्र्स में थ्ो, तब उन्हें पता चला कि पास में कोई मंदिर है, जहां यहां आने वाले हर भारतीय मत्था टेकने जाते हैं। संयोग से वहीं पर पुजारी मिल गया। उन्होंने बताया कि यहां मंदिर कुछ ही दूर है। कल ही यहां अंबानी आए थ्ो। पुजारी की इस बात से उन्हें बड़ा ताज्जुब हुआ। मंदिर से बड़ा नाम अंबानी का कैसे हो गया। दूसरी घटना का जिक्र करते हुए कहा कि जब वे सड़क पर पैदल लौट रहे थ्ो। कुछ दूर जाने के बाद उन्हें लगा कि कहीं रास्ता तो नहीं भूल गया। उन्होंने एक टैक्सी वाले से पता पूछा। टैक्सी वाले के पूछने पर उन्होंने इंडिया से होने के साथ ही अपना परिचय दिया। टैक्सी वाले उनसे कहा कि बैठ जाइए। मैं छोड़ देता हूं। वे टैक्सी में बैठ तो गए, लेकिन उन्हें डर लग रहा था कि कहीं कुछ गलत तो नहीं हो रहा है। चोरी का डर तो नहीं था, लेकिन सूटकेस में पूंजी से अधिक इज्जत थी। मन में कई तरह के ख्याल आ रहे थ्ो। इस बीच वे मंजिल तक पहुंच गए। टैक्सी वाले ने कहा कि यही वह जगह है। कुलपति टैक्सी से उतरे और पूछा कि कितने पैसे हुए। टैक्सी चालक ने अपना नाम जावेद बताते हुए कहा कि वह बंगलादेश से है। वह उनसे पैसे नहीं लेंगे। बस दुआओं में याद रखना। यहीं लगा कि विदेश में अब भी तहजीब जिंदा है।


क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी प्रेम कुमार को विदाई


प्रेस क्लब की ओर आयोजित कार्यक्रम में भारत सरकार के केंद्रीय संचार ब्यूरो के बिलासपुर स्थित क्ष्ोत्रीय कार्यालय के प्रचार अधिकारी डॉ. प्रेम कुमार भी मौजूद रहे। उनका तबादला भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली में हो गया है। यहां उन्हें विदाई दी गई। डॉ. प्रेम कुमार ने कहा कि यहां के पत्रकारों को दिल्ली में किसी भी तरह के सहयोग की जरूरत पड़ेगी तो उनका मदद जरूर करेंगे।

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