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बच्चों की नींद और खुशी छीन रहा मोबाइल

बच्चे अपने रिश्तों को नजरअंदाज कर रहे

बिलासपुर।आज के डिजिटल युग में स्मार्टफोन बच्चों और किशोरों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। स्मार्टफोन का बढ़ता इस्तेमाल बच्चों को केवल डिजिटल दुनिया में सीमित कर रहा है, जिससे वे अपने रिश्तों को नजरअंदाज कर रहे हैं। बढ़ता स्क्रीन टाइम बच्चों की जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है। बच्चे परिवारों और दोस्तों से दूर हो रहे हैं। स्मार्टफोन के अधिक उपयोग से बच्चों में शारीरिक के साथ मानसिक स्वास्थ्य में भी गिरावट आई है।
डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों को मोबाइल कम दे और कोशिश किया जाए को बच्चों को मोबाइल से दूर रखे और अगर कोई अर्जेंट काम करना भी है तो मोबाइल से करे लेकिन
कम करे और उसका ब्राइटनेस को कम करके मोबाइल को देखते।इतना ही नहीं मोबाइल को एक साथ घंटों तक नहीं देखे,बल्कि मोबाइल को रुक रुककर देखे ताकि आंखों को ज्यादा फर्क न पड़े।इससे बच्चों को मोबाइल की लत से दूर रखा जा सकेगा और बच्चो के भविष्य को बचाया जा सकेगा।

सामान्य गतिविधियों में व्यवधान

बच्चों में प्रॉब्लेमेटिक स्मार्टफोन उपयोग की स्थिति देखी जाने लगी है। यह तब होता है जब स्मार्टफोन का उपयोग इतना बढ़ जाता है कि यह बच्चों के पढ़ाई, नींद और रिश्तों में बाधा डालने लगता है।

बढ़ा फोन का उपयोग

2012 में बच्चों में स्मार्टफोन रखने वालों की संख्या 62 फीसदी थी

2021 तक यह आंकड़ा 94 फीसदी तक पहुंच गया

2018 में 37 फीसदी बच्चे सप्ताहांत पर तीन घंटे उपयोग करते थे फोन

2024 तक यह आंकड़ा 73 फीसदी तक पहुंच गया

डॉक्टरों के अनुसार ये है लक्षण

स्मार्टफोन को बार-बार चेक करना

पढ़ाई या नींद में बाधा आना

बिना फोन के गुस्से या चिड़चिड़ापन का अनुभव

वर्जन
मोबाइल का उपयोग कम करे और बच्चो को रखे,जब तक बहुत ज्यादा जरूरत नहीं हो तब तक मोबाइल का उपयोग न करे।और रात के अंधेरे में मोबाइल बिल्कुल न देखे।

डॉक्टर वैभव उपाध्याय
सिम्स

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