Blog

रेड डाटा बुक में अब माहुल भी…करना होगा संरक्षण और संवर्धन पर काम

बिलासपुर- अब माहुल पर संरक्षण और संवर्धन का काम वानिकी वैज्ञानिकों को करना होगा क्योंकि आई यू सी एन ने अपनी रेड डाटा बुक में इस प्रजाति को सर्वाधिक संकटग्रस्त वृक्ष के रूप में दर्ज कर लिया है।

नया खुलासा इसलिए हैरान और परेशान करने वाला माना जा रहा है क्योंकि यह प्रजाति तेजी से खत्म होने की स्थिति में आ चुकी है। सबसे बड़ी चिंता उन परिवारों को लेकर भी है, जिनकी आजीविका का सहारा माहुल ही है। मालूम हो कि माहुल परिवार का मुखिया पलाश पहले से ऐसी ही मुसीबत का सामना कर रहा है।


इसलिए रेड बुक में

अनुसंधान में माहुल के विलुप्त की कगार पर पहुंचने के पीछे जो कारण मिले हैं, उसमें इसके पौध रोपण को लेकर अनिच्छा प्रमुख है। अंधाधुंध कटाई और संरक्षण- संवर्धन की दिशा में बरती जा रही लापरवाही दूसरी बड़ी वजह है। भरपूर मात्रा में मिलने वाले इसके बीज का समुचित उपयोग नहीं किया जाना, तीसरी वजह मानी गई है।


अब करेंगे यह काम

बोनी की जगह जर्मिनेशन-ट्रे का उपयोग किया जाएगा। इसमें रेत और उपचारित मिट्टी डाली जाकर 2 सेंटीमीटर की गहराई में बीज डाले जाएंगे। बीज से बीज की दूरी 3 सेंटीमीटर रखनी होगी। यह विधि ज्यादा अंकुरण तय करती हैं। एक माह बाद तैयार पौधे, रोपण के लिए निकाले जा सकेंगे। मालूम हो कि माहुल ऐसी प्रजाति है, जिसका रोपण किसी भी प्रकार की भूमि में किया जा सकता है।


हर हिस्सा उपयोगी

माहुल की पत्तियां सबसे ज्यादा उपयोगी मानी गई है। दोना-पत्तल बनाने के काम आने वाली इसकी पत्तियों से हजारों परिवारों का जीवन यापन होता है, तो जड़ों से तपेदिक, बुखार और आंत्रशोथ से बचाव की दवाइयां बनती हैं। बीज की खरीदी ऐसी औषधि निर्माता कंपनियां करती है, जो फोड़ा, फुंसी और डायरिया ठीक करने की दवाई का उत्पादन करती है।


जानिए माहुल को

10 से 30 मीटर ऊंचा होता है माहुल का वृक्ष। शाखाओं में बाल जैसे लंबे रेशे होते हैं। इसकी पत्तियां 10 से 45 सेंटीमीटर लंबी और 2 भाग में बंटी हुई होती हैं। फूलों का रंग सफेद और पीला होता है। फल 20 से 30 सेंटीमीटर लंबा होता है। फूल अप्रैल से जून के मध्य और फल जनवरी से मार्च के महीने में लगते हैं। विशेष प्रकार की भूमि की जरूरत नहीं होने वाले माहुल के बीज की अंकुरण क्षमता 60 से 65% मानी गई है।


संकटग्रस्त प्रजाति

वनों की अंधाधुंध कटाई से माहुल संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी में आ गया है। पत्तियां मिट्टी के कटाव से बचाती है। इसका उपयोग छप्पर, प्लेट, कप, रेशेदार भीतरी छाल का उपयोग रस्सी बनाने, तने का उपयोग टोकरी सज्जा, चटाई और बुनाई कार्य के लिए किया जाता है।

अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *