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कम फूटे पटाखे, वायू और ध्वनी प्रदूषण से मिली राहत, 7.52 प्रतिशत की आई कमी

दिवाली में जमकर आतिशबाजी, रखा गया पर्यावरण का ध्यान

बिलासपुर। इस दिवाली में शहर की आबोहवा पिछले कुछ सालों से बेहतर और स्वच्छ रही। प्रदूषण से राहत मिलने के साथ ही बिलासपुर का इंडेक्स वैल्यू भी काफी संतोषजनक रहा। पर्यावरण संरक्षण मण्डल के मुताबिक इंडेक्स वैल्यू 82 दर्ज किया गया है। रिकार्ड के अनुसार इस साल दिवाली में वायु प्रदूषण पिछले साल की तुलना में करीब 7.52 प्रतिशत कम रहा। हालांकि शहर में घनी आबादी वाले इलाकों में प्रदूषण का स्तर बढ़ा पाया गया है। इसमें अन्य दिनों की तुलना ने आंशिक बढ़ोतरी दर्ज की गई है। राहत वाली बात रही कि कि समग्र सर्वेक्षण में शहर के अन्य हिस्सों में हवा साफ और स्वच्छ रही। इसके साथ ही वायु प्रदूषण के साथ ही बिलासपुर के ध्वनि प्रदूषण में करीब 3.62 प्रतिशत की कमी पाई गई है। दशहरा के अवसर पर भी पर्यावरण संरक्षण मण्डल द्वारा वायू और ध्वनी प्रदूषण की जांच की गई थी। उस दौरान भी प्रदूषण का स्तर कम पाया गया था।

पर्यावरण संरक्षण मंडल द्वारा दिवाली के पहले और बाद की प्रदूषण की स्थिति पर संजय तरण पुष्कर में लगी प्रदूषण मापक संयंत्र के जरिए प्रदूषण की जांच की जाती है। मशीन में दर्ज आंकड़ों पर नजर डालें तो दीपावली की रात आतिशबाजी के बाद प्रदूषण की जांच के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर जारी आंकड़ों पर गौर करें तो बिलासपुर का इंडेक्स वैल्यू 82 दर्ज किया गया है। इस आंकड़े को संतोषजनक माना गया है। बीते वर्ष के आंकड़ो पर नजर डालें तो व्यापार विहार, सिरगिट्टी, गोलबाजार, तिफरा आदि इलाके में प्रदूषण का स्तर बढ़ा हुआ था। यह ऐसे इलाके थे जहां की सडक़ं नहीं बनी थी और पूरे समय धूल उड़ती रहती थी। तब हवा में हानिकारक तत्व पीएम 10 और पीएम 2.5 में बढ़ोतरी पाई गई थी। पीएम 10 में 2.94 फीसद और पीएम 2.5 में छह फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी। वर्ष 2020 से यह स्थिति अधिक थी।

प्रशासन के अभियान का रहा असर

दीपावली के दौरान यह परीक्षण शहर में क्षेत्रीय कार्यालय पर्यावरण संरक्षण मंडल द्वारा संजय तरुण पुष्कर और यातायात थाने के पास किया गया था। इस साल दिवाली में वायु प्रदूषण पिछले साल की तुलना में करीब 7.52 प्रतिशत कम रहा। प्रदूषण कम करने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने शहरों में एयर क्वालिटी इंडेक्स के आधार पर पटाखों पर प्रतिबंध लगाने की बात कही थी और कलेक्टर एवं पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिए गए थे। इस साल दशहरा से लेकर दिवाली तक पर्यावरण ज्यादा प्रदूषित नहीं हुआ। पर्यावरण विभाग के द्वारा अलग-अलग जगहों पर प्रदूषण मापक यंत्र लगाए गए थे।

इस तरह समझें पीएम 10 और पीएम 2.5

पीएम 10 कण को रेस्पॉयरेबल पर्टिकुलेट मैटर कहा जाता है। ये धूल के कणों के आकार तक के होते हैं। कारखानों, सडक़ या अन्य निर्माण कार्यों के समय ऐसे कण बड़ी मात्रा में निकलते हैं। पीएम 2.5 कण सूक्ष्म आकार के होने के कारण आसानी से हमारी सांसों के जरिए अंदर जाकर फेफड़े, लंग्स और लीवर आदि को प्रभावित करते हैं। पीएम 2.5 कणों के कारण खांसी, जुकाम से लेकर अस्थमा और दिल से जुड़ी बीमारियां तक होने का खतरा रहता है। पीएम 2.5 कण डीजल वाहनों आदि से धुंए के रूप में कार्बन कण के साथ भी निकलते हैं जिनसे कैंसर जैसी गम्भीर बीमारी का खतरा बना रहता है। पीएम 2.5 कणों के वायु में घुले होने के कारण सांस लेने पर ये अंदर जाते हैं। पीएम 2.5 का स्तर बढऩे से धुंध बढ़ती है और घनत्व का स्तर भी गिरता है। पीएम 2.5 कण फेफड़ों में काफी भीतर तक पहुंचता है। पीएम 2.5 बच्चों और बुजुगों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। इससे आंख, गले और फेफड़े की तकलीफ बढ़ती है। खांसी और सांस लेने में भी तकलीफ होती है।

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