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साहब हॉस्टल की अधीक्षिका करती है प्रताड़ित और मारपीट…खाना भी देती है कम…भरपेट भोजन देने से करती है आनाकानी….इसी कारण आश्रम छोड़ने को हो रहे हम लोग मजबूर…शिकायत के बाद भी नहीं हो रही वार्डन पर कार्रवाई…AC पर उठ रहे सवाल….आखिर क्यों बचा रहे “वार्डन” को

आश्रम में होती है मारपीट,बच्चे कहते है,नहीं रहना है आश्रम में

अधीक्षिका करती है गुंडागर्दी,और प्रताड़ित

कई छात्राएं आश्रम छोड़कर घर पहुंची,लौटने का नहीं ले रही नाम

परिजनों में नाराजगी,मंत्री,विधायक और कलेक्टर के पास करेंगे शिकायत

खासखबर छत्तीसगढ़ बिलासपुर / सरकार आदिवासियों के बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के नाम पर छत्तीसगढ़ राज्य में आदिवासी विभाग अंतर्गत आश्रम और छात्रावास खोल रखी है इतना ही नहीं बच्चों के रहने खाने सोने और पढ़ने तक तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है।
बच्चों की देख रेख के लिए अधीक्षक/अधीक्षिका,भोजन पकाने रसोईया, जलवाहक, सुरक्षा के लिए चौकीदार रखा गया है।
इन आश्रम और छात्रावास में समय समय पर उच्च अधिकारियों द्वारा अचौक निरीक्षण भी किया जाता है जिसकी रिपोर्ट बड़े साहब मतलब सहायक आयुक्त महोदय को दी जाती है रिपोर्ट अच्छी है तो शाबाशी (सराहना) मिलती है नहीं तो फटकार लगाई जाती है ताकि आदिवासी के बच्चे अच्छे वातावरण में पढ़ लिख कर अपना भविष्य संवार सकें।

लेकिन यहाँ भी कागजों पर कुछ और धरातल पर कुछ और ही नजर आता है।

उदाहरण के लिए आदिवासी विकास विभाग के बड़े साहब को फोन करो तो कहते हैं मीटिंग में हूँ और हकीकत पता करनें से पता चलता है कि साहब रिटायर कर्मचारी के बिदाई कार्यक्रम में व्यस्त हैं ऐसे में जानकर कहते हैं कि साहब तनख्वाह पूरी लेते हैं तो विभाग को पूरा समय देना चाहिए। नहीं तो सवाल खड़े होते हैं!

आश्रम और छात्रावास के आसपास रहने वाले बुध्दिजीवी लोगों का कहना है कि ज्यादातर आश्रम और छात्रावास में अधीक्षक रहते ही नहीं! अगर धोखे से आश्रम/छात्रावास आए भी है तो शाम ढलते ही निकल लेते हैं। बच्चे चौकीदार के भरोसे रहते हैं। लेकिन तनख्वाह पूरी?

कलेक्ट्रेट गवाह है कि बीते कुछ समय से आश्रम और छात्रावास के बच्चों नें अधीक्षक के खिलाफ उनकी मनमानी के विरोध में मोर्चा खोला है, ऐसे में सवाल खड़े होना लाजमी है कि शिकायत मिलने के बाद भी बड़े साहब उस अधीक्षक पर कार्यवाही क्यों नहीं करते? बच्चों को बड़े साहब पर भरोसा क्यों नहीं? अधीक्षकों की इतनी ज्यादती की शिकायत बाद भी उन्हें बड़े साहब पर इतना भरोसा क्यों?

आश्रम/छात्रावास में निवासरत बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर प्रतिमाह डॉक्टर द्वारा परीक्षण किया जाता है जिसके एवज में उन्हें एक निर्धारित शुल्क दिया जाता है लेकिन पालकों की मानें आश्रम/छात्रावास में यदि बच्चे बीमार पड़ गए तो अधीक्षक उन्हें फोन कर घर ले जाकर इलाज करवाने को कहते हैं और ठीक हो जाने पर वापस लौट आने को।

इतना ही नहीं कहीं कहीं पर तो बच्चों को भरपेट भोजन ही नहीं मिलता नाश्ता की बात ही जुदा है।

कहीं कहीं तो अधीक्षक द्वारा बच्चों की पिटाई भी की जाती है अधीक्षकों के दुर्व्यवहार से स्टाफ भी नाराज होता है लेकिन बड़े साहब मानते नहीं, ना जाने क्यों?

लगता है साहब नें फॉर्मेलिटी के लिए जिले में आश्रम और छात्रावास निरीक्षण के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त कर रखा है लेकिन अधीक्षक मौके पर इनके आने से जरा भी नहीं झिझकती बल्कि उनका व्यवहार ऐसा होता है मानों बड़े साहब उनकी मुठ्ठी में है…

खबर को यही विराम देते हैं अगली एपिसोड में करेंगे एक छात्रावास या आश्रम अधीक्षिका या अधीक्षक की मनमानी का सनसनीखेज खुलासा।

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