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भारतीय राजनीति के पुरोधा,जनसंघ के संस्थापक सदस्य राजा यादवेन्द्र दत्त जी की पुण्यतिथि पर विशेष– प्रोफेसर अखिलेश्वर शुक्ला

जौनपुर / जौनपुर रियासत के 11वें नरेश राजा यादवेन्द्र दत्त दुबे का जन्म-07-दिसम्बर- 1918 को तथा इहलोक का त्याग 09-09-1999 को प्रातः 09 बजे वाराणसी में हुआ था। 10वें नरेश पिता राजा श्री कृष्ण दत्त की मृत्यु के पश्चात 27 वर्ष की आयु में आपका राज्याभिषेक वैदिक रीति रिवाज से सम्पन्न हुआ था। बाल्यकाल से ही पठन पाठन में अभिरुचि एवं राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय राजनीति से लगाव जुड़ाव आपके स्वभाव में था। क्षेत्रीय जनों से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय नेताओं का हवेली स्थित राजमहल में आने जाने वालों को प्रभावित करने की अद्भुत क्षमता थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना (27-09-1925) के कुछ ही वर्षों बाद नागपुर से नाना जी देशमुख को इस दायित्व के साथ जौनपुर भेजा गया था कि जौनपुर रियासत को प्रभावित करने तथा तेजस्वी युवा यादवेन्द्र दत्त जी को संघ कार्य में सक्रिय भूमिका के लिए तैयार करने का कार्य करें। प्रोफेसर अखिलेश्वर शुक्ला ने बताया कि नाना जी देशमुख को हवेली तक पहुंच बनाने एवं प्रभावीत करने में हफ्तेभर का समय लगा । राजा साहब संघ के कार्यक्रम एवं नाना जी देशमुख के व्यवहार से इतने प्रभावित व सक्रिय हुए कि केवल जौनपुर ही नहीं पूरे उत्तर प्रदेश के संघ प्रभारी बनाए गए। यही नहीं सर संघचालक से लेकर राष्ट्रीय हित के चिंतन से जुड़े अनेकानेक नेताओं का हवेली में जमावड़ा लगने लगा। चहल-पहल इतनी बढ़ी कि रात्रि कालीन बैठकों का दौर शुरू हुआ। राजा साहब की पुञी कुंवर पद्मा दीदी का कहना है कि हवेली स्थित राजमहल के दरबार हाल में राष्ट्रीय महत्व के गम्भीर विषयों पर गहन चर्चा हुआ करता था। उस दौर में गोपनीय बैठकों एवं गहन चर्चाओं का ही परिणाम हुआ कि “”भारतीय राष्ट्रीय जनसंघ “” की स्थापना की घोषणा दिल्ली में-21-10-1951को की गई। जिसका चुनाव चिन्ह दीपक था। कांग्रेस विरोधी जयप्रकाश नारायण जी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन के दौर में देश के सभी दलों का विलय करके “जनता पार्टी” -23 जनवरी 1977को बनी। लेकिन सत्ता केवल 28 महिने चला सकी। पुनः जनसंघीयों ने भारतीय जनता पार्टी (BJP)- 06 -04-1980को बनाया, जिसका चुनाव चिन्ह कमल का निशान है। प्रोफेसर शुक्ला ने बताया कि स्वतंत्र भारत के प्रथम चुनाव (1952) में राजा साहब को स्टार प्रचारक के तौर पर प्रस्तुत किया गया। आपके ओजस्वी भाषण , वाकपटुता और याददाश्त का सभी लोहा मानते थे। टिकट बंटवारे में आपकी अहम भूमिका होती थी। राजा साहब स्वयं 03 बार विधायक, 02 बार सांसद रहे। जब भी चुनाव मैदान में रहे बीबीसी लंदन से आपके चुनाव का कवरेज सुर्खियों में होता था। एक बार तो बीबीसी लंदन ने यहां तक कहा था कि -जौनपुर रियासत के राजा यादवेन्द्र दत्त दुबे एवं समाजवादी डॉ राममनोहर लोहिया के विरुद्ध लड़ने के लिए कोई कांग्रेसी प्रत्याशी नहीं तैयार हो रहा है। जबकि उस दौर में पुरा देश कांग्रेसमय था। राजा साहब के प्रभावी व्यक्तित्व व आकर्षण को देखते हुए पंडित दीनदयाल उपाध्याय को जनसंघ का प्रत्याशी जौनपुर से (1963) में घोषित किया गया था। हवेली से ही पुरे चुनाव का संचालन हो रहा था। लेकिन बाहरी प्रत्याशी होने के नाम पर हार का सामना करना पड़ा था। राजा साहब उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तथा लोकसभा में रहते हुए विदेशी मामलों से जुड़े रहे और विदेशी प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व भी किया। हवेली में द्वितीय सरसंघचालक गुरु गोलवरकर,भाऊ रांव देवरस,, वेणु गोपालन, भारत रत्न नाना जी देशमुख,पं दीनदयाल उपाध्याय,भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई, भारत रत्न लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्र, बाबू जगजीवन राम सहित लगभग सभी दलों के महत्वपूर्ण नेताओं का आना जाना लगा रहता था। राजा साहब को हिन्दी , अंग्रेजी , संस्कृत भाषा ,कला, विज्ञान विषयों के साथ साथ ज्योतिष की भी अच्छी जानकारी थी। जिसकी मिसाल है कि ” हवेली स्थित एक चंदन का पेड़ जो सुख गया था। राजा साहब ने उसे कटवा कर इस निमित्त रखवा दिया था कि जब मैं शरीर त्याग करूंगा तो इसी लकड़ी से मेरा दाह संस्कार किया जाएगा। हुआ भी ऐसा ही। 09-09-99 को प्रातः 09 बजे जब राजा जौनपुर ने देह त्याग किया तो हवेली में जो जनसैलाब उमड़ा वह अद्वितीय था। हवेली से रामघाट तक ऐसा लगा पुरा जनपद इस यात्रा में सामिल है। नभूतो नभविष्यति। जानकर आश्चर्य होगा कि- “””राजा साहब के चिता की आग लगातार प्रज्वलित है। यही आग आज भी शवदाह में प्रयोग किया जा रहा है।””” राजा साहब जौनपुर की चर्चा करते ही पुराने लोगों द्वारा अनेकानेक संस्मरण सुनने को मिलते हैं। वास्तव में राजा यादवेन्द्र दत्त जी का जीवन जनपद जौनपुर, समाज, एवं राष्ट्र के लिए समर्पित था। 2014 से केन्द्रीय सरकार एवं अनेक राज्यों में शासन सत्ता पर काबिज भाजपा की सरकार को ऐसे समर्पित विभूतियों को याद करना चाहिए – ऐसा जौनपुर जनपद की जनता अपेक्षा करती है। वास्तव में राजा जौनपुर की पुण्यतिथि पर यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी

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