असहनशील गर्मी और विलंबित मानसून: छत्तीसगढ़ में जीवन के लिए बढ़ती चुनौती

बिलासपुर – छत्तीसगढ़ राज्य इन दिनों भयंकर और असहनीय गर्मी की चपेट में है। तापमान लगातार 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बना हुआ है और मानसून की कोई स्पष्ट आहट अब तक नहीं है। यह स्थिति न केवल मानव जीवन के लिए संकट बन चुकी है, बल्कि पशु-पक्षी, वनस्पति और सम्पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र पर भी गंभीर प्रभाव डाल रही है। इस गर्मी ने जलवायु परिवर्तन, वनों की अंधाधुंध कटाई, शहरीकरण और पारंपरिक जल स्रोतों की उपेक्षा जैसे कारणों की गंभीरता को उजागर कर दिया है।

वर्तमान स्थिति का आकलन
तापमान: मई-जून 2025 में राज्य के अधिकांश जिलों में अधिकतम तापमान 45°C तक दर्ज किया गया, जो पिछले एक दशक में सर्वाधिक है।

मानसून की स्थिति: सामान्यतः मानसून 10–15 जून तक राज्य में प्रवेश कर जाता है, किंतु इस वर्ष मौसम विभाग का पूर्वानुमान है कि मानसून जुलाई के प्रथम सप्ताह तक विलंबित रहेगा।
जल स्तर: रायपुर, बिलासपुर, महासमुंद, दुर्ग, कोरबा जैसे जिलों में भूजल स्तर औसतन 3–5 मीटर तक नीचे चला गया है।

प्रभावित घटक
मानव स्वास्थ्य
- हीट स्ट्रोक और डिहाइड्रेशन: अस्पतालों में लू लगने और निर्जलीकरण के मामलों में 30% की वृद्धि दर्ज की गई है।
- श्रमिकों पर असर: खुले स्थानों में कार्यरत मज़दूरों की कार्यक्षमता बुरी तरह प्रभावित हो रही है।
बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा
- 16 जून से स्कूल खुल रहे हैं, जबकि तापमान 45°C से ऊपर है। इतनी भीषण गर्मी में छोटे बच्चों को स्कूल भेजना उनकी स्वास्थ्य और जीवन सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है।
- डिहाइड्रेशन, चक्कर आना, नाक से खून आना, और हीट स्ट्रोक जैसी घटनाएँ पहले ही गर्मी में देखी जा चुकी हैं।
- अभिभावकों और शिक्षकों की मांग है कि या तो स्कूल समय बदला जाए या फिर जुलाई तक ग्रीष्म अवकाश बढ़ाया जाए।

पशु-पक्षी एवं जंगली जीवन
- जल संकट: जलस्रोत सूखने से जानवरों और पक्षियों को पीने का पानी नहीं मिल रहा है।
- मृत्यु की घटनाएं: गर्मी और जल संकट के कारण कई पक्षियों और जंगली जानवरों की मौत हुई है।
कृषि और पर्यावरण
- फसलों पर असर: धान की नर्सरी लगाने का समय निकल रहा है, जिससे खरीफ फसल का चक्र बाधित हो सकता है।
- वनों में आग: सूखी पत्तियाँ, झाड़ियाँ और अत्यधिक गर्मी वनों में आग की घटनाओं को बढ़ा रही हैं।

मुख्य कारण
कारण
- जलवायु परिवर्तन – वैश्विक तापमान में वृद्धि का असर स्थानीय मौसम पर भी साफ दिख रहा है।
- वनों की कटाई – हरियाली की कमी से वर्षा चक्र असंतुलित हो गया है।
- पारंपरिक जल स्रोतों की उपेक्षा- बावड़ी, तालाब, कुएँ आदि या तो सूख चुके हैं या अतिक्रमण के शिकार हैं।
- शहरीकरण और कंक्रीटीकरण – इससे “हीट आइलैंड” प्रभाव बढ़ा है, जहाँ शहरों में तापमान अधिक रहता है।
समाधान और सुझाव
समाधान क्रियान्वयन
- जल संरक्षण – वर्षा जल संचयन अनिवार्य किया जाए; पारंपरिक जल स्रोतों का पुनरुद्धार किया जाए।
- हरियाली बढ़ाना “ग्रीन बेल्ट अभियान” चलाकर वृक्षारोपण को गति दी जाए।
- मानसून पूर्व तैयारी – किसानों को सूखा-प्रतिरोधी बीज और तकनीकी सहायता दी जाए।
- वन्यजीव सहायता केंद्र – हर वन परिक्षेत्र में जल टंकी, शेड और आपात चिकित्सा की व्यवस्था हो।
- शहरी योजना में सुधार – शहरों में अधिक पार्क, जलाशय और खुले स्थान विकसित किए जाएं।
- शैक्षणिक संस्थानों को निर्देश – स्कूलों के समय में परिवर्तन किया जाए या अवकाश बढ़ाया जाए; बच्चों को पर्याप्त पानी, छाया और प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा दी जाए।
छत्तीसगढ़ आज जिस असहनशील गर्मी और मानसून की अनिश्चितता से गुजर रहा है, वह केवल एक मौसमी चुनौती नहीं, बल्कि हमारी विकास की दिशा पर गंभीर प्रश्नचिन्ह है। अब यह स्पष्ट हो गया है कि बिना जलवायु अनुकूलन नीति के हम इस संकट से नहीं निपट सकते। शासन, वैज्ञानिक समुदाय, समाज और प्रत्येक नागरिक को मिलकर जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए सक्रिय प्रयास करने होंगे। तभी छत्तीसगढ़ एक बार फिर “हरित, सुरक्षित और संतुलित” राज्य बन सकेगा — बच्चों, किसानों, वन्यजीवों और आने वाली पीढ़ियों के लिए।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर