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नर्मदा नगर में श्रीमद् देवी भागवत महापुराण कथा का सप्तम दिवस सादर संपन्न

पंडित तुलाराम तिवारी जी महाराज के द्वारा किया जा रहा श्रीमद् देवी भागवत महापुराण

खासखबर बिलासपुर – नर्मदा नगर जय माँ दुर्गा सदन में चल रहें श्रीमद् देवी भागवत महापुराण कथा में देवी के दिव्य आध्यात्मिक अनुष्ठान महोत्सव में नवरात्रि सप्तम दिवस के अवसर पर सप्तम दिवस का कथा संपन्न हुआ।व्यास पीठ पर शुसोभित श्रीमद देवी भागवत महापुराण कथा के वक्ता श्रद्धेय तुलाराम तिवारी जी महाराज के द्वारा सप्तम दिवस की कथा में हरिश्चंद्र चरित्र,शाकंभरी अवतार,दुर्गा अवतार एवं शिव – पार्वती विवाह महोत्सव की कथा सुनाई गई,व्यास जी के द्वारा शर्याति की पुत्री सुकन्या चरित्र को बताते हुए कहा कि कैसे सुकन्या ने तपस्या कर रहे च्यवन ऋषि की आंखे भूल से फोड़ दी थी।और फिर सुकन्या ने पिता की आज्ञा से ऋषि के कहने पर बूढ़े और अंधे ऋषि से विवाह कर लिया।और फिर सुकन्या ने पतिव्रता के तप से अश्वनी कुमार के द्वारा अपने पति को युवा और सुंदर शरीर और आंख की दृष्टि को प्राप्त करा दिया।अगर संस्कार अच्छे है तो कुछ भी असंभव नहीं है।व्यक्ति को कथा सुननी चाहिए क्योकि कथा सुनने,पढ़ने से जीवन में संस्कार आते है।आज शिव पार्वती विवाह के प्रसंग की कथा बताते हुए व्यास जी ने कहा कि शिव पार्वती विवाह की महिमा बड़ी अद्भुत है। व्यास जी ने कहा कि वेदों में विवाह की जैसी रीति कही गई है महामुनियों ने शिव विवाह में वह सभी रीति करवाई। पर्वत राज हिमांचल ने हाथ में कुश लेकर तथा कन्या का हाथ पकड़ कर उन्होंने अपने पुत्री भवानी शिव जी को समर्पण किया।

पानि ग्रहण जब कीन्ह महेशा।
हिय हरशे तब सकल सुरेशा।।
वेद मंत्र मुनिवर उच्चरही।
जय जय जय शंकर सुर करही।।

व्यास जी ने कहा कि जब शिवजी ने पार्वती का पानि ग्रहण किया तब सब देवता हृदय से बड़े हर्षित हो जाते है। श्रेष्ठ मुनिगण वेद मत्रों का उच्चारण करने लगे। और देवता शिवजी की जय-जय कर करने लगे। अनेक प्रकार के बाजे बाजने लगे आकाश से नाना प्रकार के फूलों की वर्षा होती है। शिव पार्वती का विवाह संपन्न हो गया। सारे ब्राह्मड में आनंद भर गया। दासी, दास, रथ, घोड़े, हाथी गाये, वस्त्र और मणि अनेक प्रकार की वस्तुएं अन्न ,सोने का बर्तन शुभ शगुन के रूप में दहेज दिया गया जिसका वर्णन नहीं हो सकता है।भवानी के पिता हिमांचल हाथ जोड़कर कहा कि हे शंकर जी आप पूर्ण काम है मैं आपको क्या दे सकता हूं इतना कह कर शिव के चरण पकड़ लेते हैं। तब कृपा के सागर शिव जी ने अपने ससुर का सब प्रकार से समाधान करते हैं।फिर प्रेम से परिपूर्ण हृदय मैंना जी ने शिव जी का चरण पड़कर कहा कि हे नाथ यह उमा मुझे मेरे प्राणों के समान प्रिय है इसके सब अपराधों को क्षमा करते रहिएगा। तब शिव जी ने बहुत तरह से अपनी सास को समझाया।और फिर माता ने पार्वती को बुलाकर गोद में बिठाकर सुंदर सीख देती है। व्यास जी ने कहा कि शिव पार्वती विवाह के पावन चरित्र की कथा को जो भी मनुष्य सुनता, पढता,गाता और कहता है, उसको अपने आचरण में उतरता है। उसके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं उसे धन्यादि,पुत्रादि एवं विद्या आदि की प्राप्ति सहज ही हो जाती है।
कथा के दौरान आयोजनकर्ता श्रीमति सुशीला साहू,जनकराम साहू, अनुराग साहू सहित अन्य भक्तिमय वातावरण में मौजूद रहें

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