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21 मार्च 2025: विश्व वानिकी दिवस

वन और भोजन – सतत भविष्य की ओर

बिलासपुर – प्रत्येक वर्ष 21 मार्च को विश्व वानिकी दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य वनों के महत्व को रेखांकित करना और उनके संरक्षण को प्रोत्साहित करना है। वर्ष 2025 के लिए इस दिवस की थीम “वन और भोजन” रखी गई है, जो वनों की खाद्य सुरक्षा, पोषण और आजीविका में भूमिका पर ध्यान केंद्रित करती है।

“वन और भोजन” थीम का महत्व

वन न केवल भोजन, ईंधन, आय और रोजगार प्रदान करते हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर लगभग 1.6 अरब लोगों की आजीविका का आधार भी हैं। वनों से प्राप्त खाद्य पदार्थ, औषधीय पौधे और पारंपरिक खाद्य स्रोत पोषण के साथ-साथ सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्व भी रखते हैं। 2025 में यह दिवस वनों की खाद्य प्रणालियों में भूमिका को उजागर करने पर केंद्रित रहेगा, जिससे लोगों में जागरूकता बढ़ेगी कि वन केवल कार्बन स्टोर करने या जैव विविधता बनाए रखने का माध्यम नहीं हैं, बल्कि वे हमारे भोजन और पोषण सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वनों का ऐतिहासिक और पर्यावरणीय महत्व

वन पृथ्वी की सतह के 30% से अधिक हिस्से को कवर करते हैं और लगभग 60,000 से अधिक वृक्ष प्रजातियों का घर हैं। ये स्थलीय जैव विविधता के 80% हिस्से का समर्थन करते हैं और जलवायु परिवर्तन से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन, प्रति वर्ष 10 मिलियन हेक्टेयर भूमि की वन कटाई हो रही है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो रहा है।

वनों से प्राप्त खाद्य संसाधन

वनों से मिलने वाले खाद्य उत्पाद मानव पोषण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, जैसे:

फल और बीज: तेंदू, महुआ, आंवला, काजू, अखरोट आदि।

औषधीय पौधे: गिलोय, तुलसी, अश्वगंधा, नीम।

जंगली मशरूम और शहद: पारंपरिक भोजन और औषधीय गुणों से भरपूर।

कंद-मूल और जड़ी-बूटियाँ: ग्रामीण और आदिवासी समुदायों के आहार का अभिन्न हिस्सा।

वन संरक्षण के लिए आवश्यक कदम

वृक्षारोपण और पुनर्वनीकरण को बढ़ावा देना।

अवैध कटाई और वनों के अंधाधुंध दोहन को रोकने के लिए सख्त नीतियाँ लागू करना।

पारंपरिक और आधुनिक कृषि प्रणालियों को एकीकृत कर कृषि वानिकी को बढ़ावा देना।

वनों पर निर्भर समुदायों को सशक्त बनाना ताकि वे सतत प्रथाओं को अपनाकर अपने खाद्य संसाधनों की रक्षा कर सकें।

खाद्य सुरक्षा और पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत

विश्व वानिकी दिवस 2025 हमें यह संदेश देता है कि वन केवल हमारे पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए नहीं हैं, बल्कि वे हमारी खाद्य सुरक्षा और पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी हैं। अतः, वनों का संरक्षण और सतत उपयोग हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इन प्राकृतिक संसाधनों का लाभ उठा सकें। इस अवसर पर हम सबको संकल्प लेना चाहिए कि वनों की रक्षा और पुनर्वनीकरण में अपना योगदान देंगे, जिससे प्रकृति और मानव जीवन के बीच संतुलन बना रहे।

अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर

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