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तबादला नीति पर उठे सवाल, इम्तियाज मंसूरी को लेकर स्वास्थ्य विभाग घेरे में…..जिले के बाहर तबादले पर ‘कमी’ का बहाना,अंदर तबादले पर चुप्पी—लेनदेन और पक्षपात के आरोप

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही। जिले के स्वास्थ्य विभाग में एक बार फिर तबादला नीति को लेकर गंभीर अनियमितता और पक्षपात के आरोप सामने आए हैं। इस बार विवाद का केंद्र बिंदु हैं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सिवनी (मरवाही विकासखंड) में पदस्थ ग्रामीण चिकित्सा सहायक इम्तियाज मंसूरी, जिनके तबादले और रिलीव प्रक्रिया को लेकर दोहरे मापदंड खुलकर सामने आए हैं।

25 जून 2025 को प्रभारी मंत्री के अनुमोदन उपरांत कलेक्टर एवं जिला दंडाधिकारी कार्यालय द्वारा एक स्थानांतरण आदेश जारी किया गया, जिसमें इम्तियाज मंसूरी को सिवनी से पेंड्रा स्थानांतरित किया गया। इस आदेश में यह स्पष्ट उल्लेखित था कि यह तबादला स्वयं के व्यय पर किया जा रहा है। आदेश में सिवनी स्वास्थ्य केंद्र में किसी भी प्रकार की चिकित्सकीय स्टाफ की कमी का उल्लेख नहीं किया गया था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उस समय कर्मचारी की अनुपस्थिति विभाग को कोई समस्या नहीं लग रही थी।

लेकिन महज एक दिन बाद, 26 जून को राज्य शासन द्वारा इम्तियाज मंसूरी का स्थानांतरण जशपुर जिले के लिए कर दिया गया। इस आदेश के जारी होते ही अचानक विभाग द्वारा यह तर्क सामने लाया गया कि सिवनी में ग्रामीण चिकित्सा सहायक की कमी है और इसी कारण उन्हें रिलीव नहीं किया जा सकता। यह विरोधाभासी स्थिति गंभीर सवाल खड़े करती है — जब जिला प्रशासन खुद स्थानांतरण आदेश जारी करता है तब कोई स्टाफ की कमी नजर नहीं आती, लेकिन राज्य शासन का आदेश आते ही वही स्वास्थ्य केंद्र ‘संवेदनशील’ घोषित कर दिया जाता है?

सूत्रों का दावा है कि इम्तियाज मंसूरी को रिलीव न करने के पीछे आर्थिक लेनदेन और कुछ अधिकारियों की मिलीभगत काम कर रही है। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार, जिला चिकित्सा अधिकारी स्वयं इस प्रक्रिया को जानबूझकर रोक रहे हैं ताकि पहले से निर्धारित जिला स्तर के समीकरण बिगड़ने न पाएँ। ऐसा प्रतीत होता है कि यदि इम्तियाज को राज्य शासन के आदेश के अनुसार रिलीव कर दिया जाता, तो वह सीधे जशपुर चले जाते और पेंड्रा में उनकी उपस्थिति नहीं हो पाती, जिससे कुछ प्रभावशाली लोगों की ‘व्यवस्था’ प्रभावित हो जाती।

स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर संदेह तब और गहरा हो जाता है जब यह सामने आता है कि आरती ताम्रकार नामक एक अन्य ग्रामीण चिकित्सा सहायक को कोडगार से आमाडांड स्थानांतरित कर दिया गया है, जबकि कोडगार में मात्र एक ही ग्रामीण चिकित्सा सहायक पदस्थ था। यहां भी स्टाफ की कमी को नजरअंदाज करते हुए स्थानांतरण को प्राथमिकता दी गई, जबकि इम्तियाज मंसूरी के मामले में यही “कमी” रोड़ा बन गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि “कमी” का तर्क चुनिंदा मामलों में ही इस्तेमाल किया जा रहा है और विभागीय निर्णयों में पारदर्शिता नहीं है।

जब इस संबंध में जिला स्वास्थ्य अधिकारी से प्रतिक्रिया ली गई तो उन्होंने सिवनी में स्टाफ की कमी का हवाला देते हुए रिलीव न करने को सही ठहराने की कोशिश की, लेकिन उनके बयान खुद उनके विभाग के पूर्व आदेशों से मेल नहीं खाते। यदि 25 जून को स्वयं जिला प्रशासन ने स्थानांतरण आदेश जारी किया था, तो उसी विभाग द्वारा 26 जून को स्टाफ की कमी बताना पूर्णतः अव्यवहारिक और संदेहास्पद है।

पूरे प्रकरण की समग्रता यह इंगित करती है कि जिला स्तर पर तबादले को राज्य शासन के आदेश से ऊपर रखने की कोशिश की जा रही है और इसके पीछे कुछ अधिकारियों के निजी हित या पूर्वनियोजित दबाव हो सकते हैं। यह भी आशंका जताई जा रही है कि जानबूझकर रिलीव प्रक्रिया को विलंबित कर राज्य शासन के आदेश को निष्प्रभावी करने का प्रयास किया जा रहा है।

तबादला नीति की इस मनमानी और दोहरे मापदंडों ने जिले के स्वास्थ्य विभाग की साख पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। यह घटनाक्रम न सिर्फ कर्मचारी हितों के खिलाफ है बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता, निष्पक्षता और सेवा शर्तों की भी खुलेआम अनदेखी को उजागर करता है।

रिपोर्ट: रितेश कुमार गुप्ता
Lallanguru News

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