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शिक्षा का मंदिर हुआ बदहाल….जानलेवा ट्रांसफार्मर और जर्जर भवन से हो सकता है कभी भी कोई हादसा…जानिए कहाँ का है मामला

खासखबर बिलासपुर। ये तसवीर है बिलासपुर जिले के विकास खण्ड शिक्षा कार्यालय बिल्हा अंतर्गत संचालित प्राथमिक शाला खपराखोल की है, यहाँ के हालात बद से भी बदत्तर है क्योंकि यहाँ बाउन्ड्रीवाल नहीं है जर्जर प्राथमिक शाला के ठीक सामने जानलेवा ट्रांसफार्मर है परिसर के एक ओर गड्ढे हैं। फिर भी यहाँ बच्चे पढ़ने आते हैं लेकिन प्रशासन है कि हाथ पर हाथ धरे बैठा है।

इस सरकारी स्कूल में नवनिहाल शासन की तमाम योजनाओं का लाभ और मुफ्त शिक्षा ग्रहण करने जाते हैं…अपना भविष्य गढ़ने, अपनी जिंदगी सवारने के लिए, इस लायक बनने के लिए ताकि दुनियाँ के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें लेकिन बिल्हा विकास खण्ड अंतर्गत संचालित प्राथमिक शाला खपराखोल बात ही कुछ और है।

यहाँ पदस्थ प्रधान पाठक रामस्वरूप विश्वकर्मा नें बताया कि यहाँ दो दिन से बच्चों को मध्यान्ह  भोजन नहीं मिल रहा है क्योंकि भोजन पकाने वाली महिला के यहाँ किसी का निधन हो गया है। वैकल्पिक व्यवस्था नहीं किए जाने का नतीजा दो दिनों से बच्चे मध्यान भोजन योजना से वंचित हैं। उन्हें शासन की महत्वपूर्ण योजना का लाभ नहीं यानि भोजन ही नहीं मिला।

हम अपने पाठकों को बता दें कि यहाँ तीन शिक्षक पदस्थ हैं किन्तु तीनों शिक्षक ट्रेनिंग में गए हैं। इतना ही नहीं शिक्षक स्कूल खुलने 26/06/2024 के दिन भी नहीं आए प्रधान पाठक ने बोला कि उस दिन भी शिक्षक ट्रेनिंग में थे।

ऐसे में बड़ी उम्मीद से स्कूल आए इन बच्चों को पाठ पढ़ायेगा कौन?स्कूल खुलने के पहले दिन स्कूल से नदारत रहने वाले शिक्षकों पर कार्यवाही करेगा कौन?

प्रधान पाठक रामस्वरूप विश्वकर्मा और उनके सहयोगी शिक्षकों की उदासीनता का नतीजा है कि कक्षा एक में अब तक किसी बच्चे नें एडमिशन नहीं लिया है।

*तसवीर झूठ नहीं बोलती*

हम अपने पाठकों को बता दें कि गांवों में स्थापित कमोबेश ज्यादातर सरकारी स्कूलों का हाल बेहाल हैं गांवों में शिक्षकों द्वारा सर्व नहीं किया जाता परिणामस्वरूप इस स्कूल में भी कुल 39 दर्ज बच्चों में 20 बच्चे ही स्कूल आए थे।

हर महीने सरकार से मोटी तनख्वाह पाने वाले जिम्मेदार अधिकारियों की उदासीनता और स्कूल में पदस्थ शिक्षकों की लापरवाही के चलते पांचवीं कक्षा के बच्चों का रिजल्ट भी नहीं बांटा गया है और ना ही उपस्थिति रजिस्टर पर बच्चों का अटेंडेंस भरा गया है और तो और किताबें और गणवेश का वितरण भी बच्चों में नहीं किया गया है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि शिक्षा विभाग के स्कूलों में पदस्थ प्रधान पाठक,संकुल समन्वयक, एबीईओ, बीईओ स्तर के अधिकारी क्या कर रहे थे?

प्राथमिक शाला में नियमानुसार पांच कक्ष होने चाहिए लेकिन यहाँ दो कक्ष और एक बरामदे में 5 कक्षाएँ संचालित की जा रही हैं। मतलब एक कक्ष में दो क्लास लगाई जा रही है। ऐसे माहौल में शिक्षा की गुणवत्ता और अधिकारियों की अनदेखी के चलते बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना बेमानी होगी।

बहरहाल कुछ दिनों में प्रधान पाठक रिटायर् हो जाएंगे लेकिन सवाल यह कि सरकारी स्कूल और व्यवस्था को लेकर पालकों के जेहन में उठते सवाल का जवाब कौन देगा? कुल मिलाकर यह अधिकारियों के लापरवाह कार्यशैली का प्रमाण है जिस पर शासन को कठोर कार्यवाही करनें की आवश्यकता है।

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